Thursday, 5 December 2019

उदन्त मार्तण्ड

"उदन्त मार्तण्ड"

उदन्त मार्तण्ड हिंदी का प्रथम समाचार पत्र था। इसका प्रकाशन 30 मई, १८२६ ई. में कलकत्ता से एक साप्ताहिक पत्र के रूप में शुरू हुआ था। कलकता के कोलू टोला नामक मोहल्ले की ३७ नंबर आमड़तल्ला गली से जुगलकिशोर सुकुल ने सन् १८२६ ई. में उदंतमार्तंड नामक एक हिंदी साप्ताहिक पत्र निकालने का आयोजन किया। उस समय अंग्रेजी, फारसी और बांग्ला में तो अनेक पत्र निकल रहे थे किंतु हिंदी में एक भी पत्र नहीं निकलता था। इसलिए "उदंत मार्तड" का प्रकाशन शुरू किया गया। इसके संपादक भी श्री जुगुलकिशोर सुकुल ही थे। वे मूल रूप से कानपुर संयुक्त प्रदेश के निवासी थे।[1] यह पत्र पुस्तकाकार (१२x८) छपता था और हर मंगलवार को निकलता था। इसके कुल ७९ अंक ही प्रकाशित हो पाए थे कि डेढ़ साल बाद दिसंबर, १८२७ ई को इसका प्रकाशन बंद करना पड़ा।[2] इसके अंतिम अंक में लिखा है- उदन्त मार्तण्ड की यात्रा- मिति पौष बदी १ भौम संवत् १८८४ तारीख दिसम्बर सन् १८२७।

आज दिवस लौं उग चुक्यौ मार्तण्ड उदन्त

अस्ताचल को जात है दिनकर दिन अब अन्त।

उन दिनों सरकारी सहायता के बिना, किसी भी पत्र का चलना प्रायः असंभव था। कंपनी सरकार ने मिशनरियों के पत्र को तो डाक आदि की सुविधा दे रखी थी, परंतु चेष्टा करने पर भी "उदंत मार्तंड" को यह सुविधा प्राप्त नहीं हो सकी। इस पत्र में ब्रज और खड़ीबोली दोनों के मिश्रित रूप का प्रयोग किया जाता था जिसे इस पत्र के संचालक "मध्यदेशीय भाषा" कहते थे।

मानहानि की दशा में सजा के प्रावधान

मानहानि की दशा में सजा के प्रावधान

इसके लिए भारतीय कानून के अनुसार दो धाराएँ है जो इसे समझाती है और वो है IPC यानि इंडियन पेनेल कोड (Indian Penal Code) के अनुसार धारा 499 और धारा 500 के अनुसार मानहानि के अपराध में दोषी पाये जाने पर दोषी को दो साल तक की सजा हो सकती है

उदाहरण:
हालाँकि भारतीय परिवेश में सामान्य तौर पर यह एक कम ही सामने आने वाला मुद्दा है क्योंकि इस तरह की शिकायतों को स्थानीय लोग अपने स्तर पर सुधार लेते है और अगर ऐसा होता भी है कि कोई व्यक्ति मानहानि का दावा करता है तो विशेष परिस्थिति को छोड़कर सामान्यत यह साबित करने में बहुत वक़्त जाया होता है कि टिप्पणी करने वाला सही है या उसके पीछे कोई आधार भी है लेकिन आप अगर भारतीय राजनीती की बात करे तो कई तरह के ऐसे मामले है जो चर्चित रहे है |  उसमे से एक है – मशहूर राजनीतिज्ञ सुभ्रमन्यम स्वामी के खिलाफ तमिलनाडु की सरकार ने मानहानि के पांच मामले कोर्ट में दायर किये थे जिन पर सुप्रीम कोर्ट ने बाद में रोक लगा दी थी और उन पर आरोप ये था कि उन्होंने मुख्यमंत्री के खिलाफ सोशल साइट्स पर अपमानजनक टिप्पणियाँ की थी |

प्रेस एवं पुस्तक रजिस्ट्रीकरण अधिनियम: 1867

प्रेस एवं पुस्तक रजिस्ट्रीकरण अधिनियम 1867

समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, पुस्तक आदि के प्रकाशन में प्रेस यानि प्रिटिंग मशीन की प्रमुख भूमिका है। इसके साथ ही समाचार पत्र आदि के प्रकाशन में संपादक, प्रकाशक व मुद्रक की महत्वपूर्ण भूमिका है। यदि किसी पत्र पत्रिका में कोर्इ अवांछित सामग्री प्रकाशित हो जाती है तो ऐसे में प्रेस एवं पुस्तक रजिस्ट्रीकरण अधिनियम 1867 के तहत सम्बन्धित पत्र-पत्रिका के विरूद्ध कार्यवाही की जा सकती है प्रकाशित सामग्री के प्रकाशन की जिम्मेदारी किसकी है और वह जिम्मेदार व्यक्ति कौन हो यह तय करने के लिए किसी भी पुस्तक, पत्र-पत्रिका आदि में उसमें प्रकाशित सामग्री के लिये जिम्मेदार व्यक्तियों के नाम का उल्लेख किया जाता है। प्रेस एवं पुस्तक रजिस्ट्रीकरण अधिनियम 1867 ऐसे मामलों में कानून की सहायता करता है। प्रेस एवं पुस्तक रजिस्ट्रीकरण अधिनियम यह सुनिश्चित करता है कि हर पत्र पत्रिका में मुद्रक, प्रकाशक, संपादक का नाम व प्रकाशन स्थल की जानकारी दी जाय। इसी अधिनियम में भारत में समाचार पत्रों के पंजीयक (Registrar of Newspapers in India) के अधिकार व भूमिका व समाचार पत्र, पुस्तक, संपादक, मुद्रक, प्रकाशक आदि को परिभाषित भी किया गया है। इनमें कानून का उल्लंघन किये जाने पर दी जाने वाली सजा का भी वर्णन किया गया है।
अधिनियम के तहत प्रत्येक पुस्तक तथा समाचार पत्र में मुद्रक का नाम व मुद्रण स्थल, प्रकाशक का नाम व प्रकाशन स्थल का नाम छापा जाना अनिवार्य है जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि पत्र-पत्रिका या पुस्तक के मुद्रण व प्रकाशन का जिम्मेदार कौन व्यक्ति है। इसी प्रकार संपादक का नाम छापा जाना भी अनिवार्य है। समाचार पत्र में प्रकाशित सामग्री के आपत्तिजनक पाए जाने पर फौजदारी कानून की धारा 124 (अ) के अन्तर्गत राजद्रोह (Treason), धारा 292 के अन्तर्गत अश्लील सामग्री प्रकाशित करने तथा धारा 499 व 500 के अन्तर्गत संपादक पर मानहानि की कार्रवार्इ की जा सकती है।

इस अधिनियम के तहत यह व्यवस्था की गर्इ है कि देश भर में किसी भी भाषा में एक ही नाम के दो समाचार पत्र नहीं हो सकते तथा किसी राज्य में एक नाम के दो समाचार पत्र नहीं हो सकते भले ही वे अलग-अलग भाषाओं में ही क्यों न हो लेकिन अलग-अलग राज्यों में व अलग भाषाओं में एक ही नाम का समाचार पत्र हो सकता है।
इस अधिनियम के तहत प्रमुख प्रावधान निम्न हैं:
1.      प्रत्येक समाचार पत्र में मुद्रक, प्रकाशक व संपादक का नाम, मुद्रण व प्रकाशन स्थल के नाम का उल्लेख होना चाहिए।
2.      मुद्रण के लिये जिलाधिकारी की अनुमति आवश्यक है।
3.      समाचार पत्र के मालिक व संपादक का नाम प्रत्येक अंक में प्रकाशित होना चाहिए।
4.      समाचार पत्र के नाम, प्रकाशन की भाषा, अवधि, संपादक, प्रकाशक आदि के नाम में परिवर्तन होने पर उसकी सूचना सम्बन्धित अधिकारियों को दी जानी आवश्यक है।
5.      एक वर्ष तक समाचार पत्र का प्रकाशन न हो पाने की दशा में जानकारी सम्बन्धी घोषणा पत्र रद्द हो जाएगा।
6.      प्रत्येक प्रकाशित समाचार पत्र की एक प्रति रजिस्ट्रार आफ न्यूज पेपर्स इन इंडिया को तथा दो प्रतियाँ सम्बन्धित राज्य सरकार को निशुल्क उपलब्ध करार्इ जानी चाहिए।
7.      रजिस्ट्रार आफ न्यूज पेपर्स इन इंडिया को वर्ष में एक बार समाचार पत्र का पूरा विवरण प्रेषित किया जाय व इसे पत्र में भी प्रकाशित किया जाय।
इसके अतिरिक्त अनेक अन्य प्रावधान भी इस अधिनियम में किये गए हैं जिनसे समाचार पत्रों व पुस्तकों सम्बन्धी जानकारी का रिकार्ड रखा जा सके।

Mr. Shankar Patel (JNVU JODHPUR)
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Coppyright © कॉप्पीराइट एक्ट

भारतीय प्रतिलिप्यधिकार अधिनियम, 1957

परिचय :

कापीराइट का अर्थ है किसी कृति के संबंध में किसी एक व्यक्ति, व्यक्तियों या संस्था का निश्चित अवधि के लिये अधिकार। मुद्रणकला का प्रचार होने के पूर्व किसी रचना या कलाकृति से किसी के आर्थिक लाभ उठाने का कोई प्रश्न नहीं था। इसलिये कापीराइट की बात उसके बाद ही उठी है। कापीराइट का उद्देश्य यह है कि रचनाकार, या कलाकार या वह व्यक्ति अथवा संस्था जिसे कलाकार या रचनाकार ने अधिकार प्रदान किया हो उस कलाकृति और रचना से निर्धारित अवधि तक आर्थिक लाभ उठा सके तथा दूसरा कोई इस बीच उससे उस रूप में लाभ न उठा पाए।

भारत में इस समय कापीराइट (प्रतिलिप्यधिकार या कृतिस्वाम्य) की जो व्यवस्था है वह 1957 के प्रतिलिप्यधिकार अधिनियम और उसके अंतर्गत बनाए गए नियमों द्वारा परिचालित होती है। इसके पूर्व भारत में 1914 में जो कापीराइट ऐक्ट बना था वह बहुत कुछ ब्रिटेन के ‘इंपीरियल कापीराइट ऐक्ट (1911)’ पर आधारित था। ब्रिटेन का यह कानून और उसके नियम, जो भारतीय स्वाधीनता अधिनियम के अनुच्छेद 18 (3) के अनुसार अनुकूलित कर लिए गए थे, 1957 तक चलते रहे। 1957 में नया कानून बनने पर पुराना कानून निरस्त हो गया।

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भारतीय प्रेस का इतिहास (THE HISTORY OF INDIAN PRESS)

                 भारतीय प्रेस का इतिहास


1.भारत में समाचार-पत्रों का इतिहास यूरोपीय लोगों के आगमन के साथ-साथ आरम्भ होता है.

2.सर्वप्रथम पुर्तगालियों ने भारत में मुद्रणालय (Printing Press) की स्थापना की.

3.भारत में सर्वप्रथम 1557 में गोआ के पादरियों ने पहली पुस्तक प्रकाशित की.

4.1684 में ईस्ट इंडिया कम्पनी ने बम्बई में एक मुद्रणालय की स्थापना की.

5.भारतीय प्रेस का इतिहास (THE HISTORY OF INDIAN PRESS) आधुनिक भारत (MODERN INDIA)
6.जेम्स ऑगस्टस हिक्की ने भारत में 1780 में पहला समाचार-पत्र प्रकाशित किया.

7.इस समाचार-पत्र का नाम “द बंगाल गैस गैजेट” (The Bengal Gazette) था.

8.किंतु सरकार की निष्पक्ष आलोचना के कारण यह समाचार-पत्र ज़ब्त कर लिया गया.कालांतर में◆कलकत्ता गजट (1784),◆बंगाल जनरल (1785),◆द ओरिएन्टल मैग्जीन ऑफ कलकत्ता (The Oriental Magazine of Calcutta, 1785),◆कलकत्ता क्रॉनिकल (1786) औरमद्रास कोरियर (1788)आदि अनेक समाचार-पत्र छपने आरंभ हुए.
9.इन समाचार-पत्रों का दृष्टिकोण सरकार के पक्ष में था.10.ये समाचार-पत्र पूर्णतया कम्पनी के अधिकारियों की दया पर निर्भर थे.


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उदन्त मार्तण्ड

"उदन्त मार्तण्ड" उदन्त मार्तण्ड हिंदी का प्रथम समाचार पत्र था। इसका प्रकाशन 30 मई, १८२६ ई. में कलकत्ता से एक साप्ताहिक पत्र के ...