प्रेस एवं पुस्तक रजिस्ट्रीकरण अधिनियम 1867
समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, पुस्तक आदि के प्रकाशन में प्रेस यानि प्रिटिंग मशीन की प्रमुख भूमिका है। इसके साथ ही समाचार पत्र आदि के प्रकाशन में संपादक, प्रकाशक व मुद्रक की महत्वपूर्ण भूमिका है। यदि किसी पत्र पत्रिका में कोर्इ अवांछित सामग्री प्रकाशित हो जाती है तो ऐसे में प्रेस एवं पुस्तक रजिस्ट्रीकरण अधिनियम 1867 के तहत सम्बन्धित पत्र-पत्रिका के विरूद्ध कार्यवाही की जा सकती है प्रकाशित सामग्री के प्रकाशन की जिम्मेदारी किसकी है और वह जिम्मेदार व्यक्ति कौन हो यह तय करने के लिए किसी भी पुस्तक, पत्र-पत्रिका आदि में उसमें प्रकाशित सामग्री के लिये जिम्मेदार व्यक्तियों के नाम का उल्लेख किया जाता है। प्रेस एवं पुस्तक रजिस्ट्रीकरण अधिनियम 1867 ऐसे मामलों में कानून की सहायता करता है। प्रेस एवं पुस्तक रजिस्ट्रीकरण अधिनियम यह सुनिश्चित करता है कि हर पत्र पत्रिका में मुद्रक, प्रकाशक, संपादक का नाम व प्रकाशन स्थल की जानकारी दी जाय। इसी अधिनियम में भारत में समाचार पत्रों के पंजीयक (Registrar of Newspapers in India) के अधिकार व भूमिका व समाचार पत्र, पुस्तक, संपादक, मुद्रक, प्रकाशक आदि को परिभाषित भी किया गया है। इनमें कानून का उल्लंघन किये जाने पर दी जाने वाली सजा का भी वर्णन किया गया है।
अधिनियम के तहत प्रत्येक पुस्तक तथा समाचार पत्र में मुद्रक का नाम व मुद्रण स्थल, प्रकाशक का नाम व प्रकाशन स्थल का नाम छापा जाना अनिवार्य है जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि पत्र-पत्रिका या पुस्तक के मुद्रण व प्रकाशन का जिम्मेदार कौन व्यक्ति है। इसी प्रकार संपादक का नाम छापा जाना भी अनिवार्य है। समाचार पत्र में प्रकाशित सामग्री के आपत्तिजनक पाए जाने पर फौजदारी कानून की धारा 124 (अ) के अन्तर्गत राजद्रोह (Treason), धारा 292 के अन्तर्गत अश्लील सामग्री प्रकाशित करने तथा धारा 499 व 500 के अन्तर्गत संपादक पर मानहानि की कार्रवार्इ की जा सकती है।
इस अधिनियम के तहत यह व्यवस्था की गर्इ है कि देश भर में किसी भी भाषा में एक ही नाम के दो समाचार पत्र नहीं हो सकते तथा किसी राज्य में एक नाम के दो समाचार पत्र नहीं हो सकते भले ही वे अलग-अलग भाषाओं में ही क्यों न हो लेकिन अलग-अलग राज्यों में व अलग भाषाओं में एक ही नाम का समाचार पत्र हो सकता है।
इस अधिनियम के तहत प्रमुख प्रावधान निम्न हैं:
1. प्रत्येक समाचार पत्र में मुद्रक, प्रकाशक व संपादक का नाम, मुद्रण व प्रकाशन स्थल के नाम का उल्लेख होना चाहिए।
2. मुद्रण के लिये जिलाधिकारी की अनुमति आवश्यक है।
3. समाचार पत्र के मालिक व संपादक का नाम प्रत्येक अंक में प्रकाशित होना चाहिए।
4. समाचार पत्र के नाम, प्रकाशन की भाषा, अवधि, संपादक, प्रकाशक आदि के नाम में परिवर्तन होने पर उसकी सूचना सम्बन्धित अधिकारियों को दी जानी आवश्यक है।
5. एक वर्ष तक समाचार पत्र का प्रकाशन न हो पाने की दशा में जानकारी सम्बन्धी घोषणा पत्र रद्द हो जाएगा।
6. प्रत्येक प्रकाशित समाचार पत्र की एक प्रति रजिस्ट्रार आफ न्यूज पेपर्स इन इंडिया को तथा दो प्रतियाँ सम्बन्धित राज्य सरकार को निशुल्क उपलब्ध करार्इ जानी चाहिए।
7. रजिस्ट्रार आफ न्यूज पेपर्स इन इंडिया को वर्ष में एक बार समाचार पत्र का पूरा विवरण प्रेषित किया जाय व इसे पत्र में भी प्रकाशित किया जाय।
इसके अतिरिक्त अनेक अन्य प्रावधान भी इस अधिनियम में किये गए हैं जिनसे समाचार पत्रों व पुस्तकों सम्बन्धी जानकारी का रिकार्ड रखा जा सके।
Mr. Shankar Patel (JNVU JODHPUR)
www.journalismstudy.blogspot.com
समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, पुस्तक आदि के प्रकाशन में प्रेस यानि प्रिटिंग मशीन की प्रमुख भूमिका है। इसके साथ ही समाचार पत्र आदि के प्रकाशन में संपादक, प्रकाशक व मुद्रक की महत्वपूर्ण भूमिका है। यदि किसी पत्र पत्रिका में कोर्इ अवांछित सामग्री प्रकाशित हो जाती है तो ऐसे में प्रेस एवं पुस्तक रजिस्ट्रीकरण अधिनियम 1867 के तहत सम्बन्धित पत्र-पत्रिका के विरूद्ध कार्यवाही की जा सकती है प्रकाशित सामग्री के प्रकाशन की जिम्मेदारी किसकी है और वह जिम्मेदार व्यक्ति कौन हो यह तय करने के लिए किसी भी पुस्तक, पत्र-पत्रिका आदि में उसमें प्रकाशित सामग्री के लिये जिम्मेदार व्यक्तियों के नाम का उल्लेख किया जाता है। प्रेस एवं पुस्तक रजिस्ट्रीकरण अधिनियम 1867 ऐसे मामलों में कानून की सहायता करता है। प्रेस एवं पुस्तक रजिस्ट्रीकरण अधिनियम यह सुनिश्चित करता है कि हर पत्र पत्रिका में मुद्रक, प्रकाशक, संपादक का नाम व प्रकाशन स्थल की जानकारी दी जाय। इसी अधिनियम में भारत में समाचार पत्रों के पंजीयक (Registrar of Newspapers in India) के अधिकार व भूमिका व समाचार पत्र, पुस्तक, संपादक, मुद्रक, प्रकाशक आदि को परिभाषित भी किया गया है। इनमें कानून का उल्लंघन किये जाने पर दी जाने वाली सजा का भी वर्णन किया गया है।
अधिनियम के तहत प्रत्येक पुस्तक तथा समाचार पत्र में मुद्रक का नाम व मुद्रण स्थल, प्रकाशक का नाम व प्रकाशन स्थल का नाम छापा जाना अनिवार्य है जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि पत्र-पत्रिका या पुस्तक के मुद्रण व प्रकाशन का जिम्मेदार कौन व्यक्ति है। इसी प्रकार संपादक का नाम छापा जाना भी अनिवार्य है। समाचार पत्र में प्रकाशित सामग्री के आपत्तिजनक पाए जाने पर फौजदारी कानून की धारा 124 (अ) के अन्तर्गत राजद्रोह (Treason), धारा 292 के अन्तर्गत अश्लील सामग्री प्रकाशित करने तथा धारा 499 व 500 के अन्तर्गत संपादक पर मानहानि की कार्रवार्इ की जा सकती है।
इस अधिनियम के तहत यह व्यवस्था की गर्इ है कि देश भर में किसी भी भाषा में एक ही नाम के दो समाचार पत्र नहीं हो सकते तथा किसी राज्य में एक नाम के दो समाचार पत्र नहीं हो सकते भले ही वे अलग-अलग भाषाओं में ही क्यों न हो लेकिन अलग-अलग राज्यों में व अलग भाषाओं में एक ही नाम का समाचार पत्र हो सकता है।
इस अधिनियम के तहत प्रमुख प्रावधान निम्न हैं:
1. प्रत्येक समाचार पत्र में मुद्रक, प्रकाशक व संपादक का नाम, मुद्रण व प्रकाशन स्थल के नाम का उल्लेख होना चाहिए।
2. मुद्रण के लिये जिलाधिकारी की अनुमति आवश्यक है।
3. समाचार पत्र के मालिक व संपादक का नाम प्रत्येक अंक में प्रकाशित होना चाहिए।
4. समाचार पत्र के नाम, प्रकाशन की भाषा, अवधि, संपादक, प्रकाशक आदि के नाम में परिवर्तन होने पर उसकी सूचना सम्बन्धित अधिकारियों को दी जानी आवश्यक है।
5. एक वर्ष तक समाचार पत्र का प्रकाशन न हो पाने की दशा में जानकारी सम्बन्धी घोषणा पत्र रद्द हो जाएगा।
6. प्रत्येक प्रकाशित समाचार पत्र की एक प्रति रजिस्ट्रार आफ न्यूज पेपर्स इन इंडिया को तथा दो प्रतियाँ सम्बन्धित राज्य सरकार को निशुल्क उपलब्ध करार्इ जानी चाहिए।
7. रजिस्ट्रार आफ न्यूज पेपर्स इन इंडिया को वर्ष में एक बार समाचार पत्र का पूरा विवरण प्रेषित किया जाय व इसे पत्र में भी प्रकाशित किया जाय।
इसके अतिरिक्त अनेक अन्य प्रावधान भी इस अधिनियम में किये गए हैं जिनसे समाचार पत्रों व पुस्तकों सम्बन्धी जानकारी का रिकार्ड रखा जा सके।
Mr. Shankar Patel (JNVU JODHPUR)
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